मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

Vardhaman suriji आचार्य श्री वर्धमानसूरिजी

आचार्य श्री वर्धमानसूरि
१. अभोहर देश में चौरासी देव-घरों के मालिक चैत्यवासी जिनचन्द्र नाम के एक आचार्य थे। उनका वर्धमान नामक शिष्य था । उस शिष्य को शास्त्र पढ़ते समय जिन मन्दिर विषयक चौरासी आशातनाओं का वर्णन पढ़ने में आया । उनका विचार करते हुए वर्धमान के मन में यह भावना उत्पन्न हुई कि- 'यदि इन चौरासी आशातनाओं का रक्षण किया जाय तो आत्म-कल्याण हो।’’ उसने अपना यह विचार गुरु को निवेदन किया । गुरुजी ने मन में सोचा कि- “इसका मन ठीक नहीं है।’’ इसलिए उसे आचार्य पद पर स्थापित कर दिया । आचार्य पद मिलने पर भी उनका मन चैत्य-गृह में वास करके रहने में स्थिर नहीं हुआ। इसलिए अपने गुरु की सम्मति से वह कुछ मुनियों को साथ लेकर दिल्ली-१ वादली आदि देशों की तरफ निकल आया। उस समय वहाँ पर श्री उद्योतनाचार्य नाम के सूरि विराज रहे थे। उनके पास वर्धमान ने आगम-शास्त्र के तत्त्वों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया और उन्हीं के समीप उपसंपदा अर्थात् पुनर्दीक्षा ग्रहण की। क्रमशः वे वर्धमानसूरि बन गये। इसके बाद उन वर्धमानसूरि को इस बात की चिन्ता हुई कि- “सूरि-मन्त्र का अधिष्ठाता देव कौन है?’’ इसके जानने के लिये उन्होंने तीन उपवास किए। तीसरा उपवास समाप्त होते ही धरणेन्द्र नामक देव प्रगट हुआ। धरणेन्द्र ने कहा कि- “सूरि-मन्त्र का अधिष्ठाता मैं हूँ।’’ और फिर उसने सूरि-मन्त्र के पदों का अलग-अलग फल बताया। इससे आचार्य- मन्त्र स्फुरायमान हो गया। फिर वे वर्धमानसूरि सारे मुनि परिवार सहित स्फुरायमान हो गए। 
विशेष
वृद्धाचार्यप्रबन्धावली के अनुसार उद्योतनसूरि अरण्यवासी (वनवासी) गच्छ के नायक थे। वृद्धाचार्य-प्रबन्धावली एवं क्षमाकल्याणकृत खरतरगच्छ पट्टावली में कहा गया है कि दण्डनायक विमल द्वारा निर्मित विमलवसही के प्रतिष्ठापक उक्त वर्धमानसूरि ही थे। सूरिमन्त्र सिद्ध होने के पश्चात् ये स्फुराचार्य के नाम से भी विख्यात हुए। इनके द्वारा रचित उपदेशपदटीका (वि०सं० १०५५), उपदेशमालाबृहद्वृत्ति, उपमितिभवप्रपंचाकथासमुच्चय आदि ग्रन्थ मिलते हैं। दुर्लभराज की सभा में हुए शास्त्रार्थ (वि०सं० १०८० के आसपास) के पश्चात् ही इनका निधन हुआ।।
1. भारतवर्ष की राजधानी, जिसे योगिनीपुर भी कहते थे। वादली नगर भी उसी प्रदेश में है जहाँ से वदलिया (श्रीमाल) गोत्र हुआ। 

(-महोपाध्याय विनयसागर लिखित खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास से उद्धृत)